Kamleswar Mahadev Temple

खड़े दिए की प्रक्रिया का महत्व: कमलेश्वर महादेव मंदिर की विशेषता

कमलेश्वर महादेव मंदिर, श्रीनगर गढ़वाल

उत्तराखंड जहां देवों की भूमि को प्राथमिकता दी जाती है वही उत्तराखंड जिले के पौड़ी में स्तिथ कमलेश्वर महादेव मंदिर (Kamleswar Mahadev Temple) श्रीनगर गढ़वाल का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है।  भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर अपनी ऐतिहासिकता, पौराणिक महत्व और प्राकृतिक सुंदरता के लिए काफी प्रसिद्ध है। यहाँ की खास प्रसिद्धी के कारण यह मंदिर अपनी ओर काफी आकर्षित करता है जिसे हर कोई व्यक्ति जानने के लिए उत्सुक रहता है। ऐसी मान्यता है की निसंतान दम्पति यहाँ रात भर खड़े दिए लेकर शिव भगवान की आराधना करते है। जिससे निसंतान दम्पति की मनोकामना पूर्ण होती है। अखिर क्या है यह तथ्य विस्तार से जानेगे इस लेख में। 

मंदिर का ऐतिहासिक महत्व

कमलेश्वर महादेव मंदिर श्रीनगर गढ़वाल की स्थापना के पीछे कई पौराणिक कथाएं हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु ने दानवों पर विजय प्राप्त करने के लिए यहाँ शिव भगवान की तपस्या की जिससे भगवान शिव प्रस्सन हो गए थे। तपस्या करते समय भगवान विष्णु ने हजार पुष्प कमलों को चढाने का संकल्प लिया था। तभी शिव भगवान् ने विष्णु की परीक्षा लेनी की सोची और उन 1000 पुष्प में से एक पुष्प को छुपा दिया। यह देख विष्णु भगवान ब्याकुल हो गए, तपस्या में बाधा न पड़े उन्होंने अपना एक नेत्र अर्पित करने का सकल्प लिया यह देख भगवान शिव प्रसन्न होकर उन्हें सुदर्शन चक्र वरदान के रूप में दिया। 

मान्यता है कि भगवान विष्णु के १००० पुष्प चढाने से इस मंदिर का नाम कमलेश्वर मंदिर पड़ा। यहां माँ पार्वती और भगवान शिव ने विशेष पूजा-अर्चना की थी। मान्यता यह भी है कि त्रेतायुग में भगवान राम ने इस स्थान पर एक शिवलिंग स्थापित कर तपस्या की थी। यह स्थान शिवभक्तों के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है। अगर आप चारधाम यात्रा करने की सोच रहे है तो यहाँ पहले या बाद में कमलेश्वर मदिर में दर्शन करना शुभ माना जाता है।

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धार्मिक महत्व और उत्सव

शिव भक्तो के  की पूजा के लिए यहां महाशिवरात्रि का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन भक्त पूरी रात जागरण करते रहते हैं और शिवलिंग पर जल, दूध और बेलपत्र चढ़ाते हैं। इसके अलावा, यहां सावन के महीने में भी श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।

Kamleswar Mahadev Temple

बैकुंठ चतुर्थदर्शी के दिन यहाँ विशेष मेला लगता है जो कि 7 दिनों तक चलता है। माना जाता है कि इस दिन को निसंतान दम्पति जो पुत्र प्राप्ति का सुख नहीं ले पाते है उनके लिए यह दिन खास होता है। इस मेले में बहुत दूर दूर से लोंगो की भीड़ मंदिर को काफी प्रभावित करती है।

निसंतान दम्पतियों की मनोकामना पूरी करता है यह मंदिर

इस मदिर में कई ऐसे निसंतान जोड़े जो की पुत्र प्राप्ति का सुख नहीं ले पाते है वे यहाँ एक विशेष प्रकार का रजिस्ट्रेशन करवाते है जो कि रात भर दिया जला कर हाथ में पकड़कर खड़े होने से निसंतान जोड़ो की मनोकामना को पूर्ण करता है जो कि अपने आप में एक चमत्कार से कम नहीं है। ऐसी मान्यता है कि एक निसंतान जोड़े ने यहा रात दिया हाथ में लेकर भगवान शिव की आराधना की जिससे भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उनकी मनोकामना को पूर्ण किया। तब से लेकर आज भी निसंतान जोड़े हर साल यहाँ अपना विशेष प्रकार का रजिस्ट्रेशन करवाते है। 


खड़े दिए की प्रक्रिया

जो लोग अपना रजिस्ट्रेशन खड़े दिए के लिए करवाते है उन जोड़ो के लिए मंदिर के लोगो द्वारा रहने खाने की ब्यवस्था मंदिर के व्यवस्थापक करवाते है ताकि जो लोग दूर – दूर से यहाँ अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए आते है उन्हें खड़े दिए में को व्यवधान ना पड़े। 

यहाँ कई जोड़े रजिस्ट्रेशन करते है जिनको मंदिर के पंडित जोड़ो के अलग अलग समूहों में बाँटते है जिससे समूहों में पंडित सभी जोड़ो की पूजा अर्चना करवाते है। पंडित लगभग शाम के 5 बजे से दिया जलना शुरू कर देते है और दिया जलने की शुरुवात महिला के हाथ में रखकर करते है तब बारी-बारी से दम्पति जोड़े दिए को बदलकर खड़े रहना पड़ता है।

रातभर दियारस्म ख़त्म होने के बाद सुबह-सुबह  गंगा स्नान किया जाता है। स्नान करने के पश्चात गौदान करने का प्रावधान किया जाता है बाद में दम्पतियों को हवन में शामिल करवाया जाता है। अंतिम में जिन दम्पतियों का व्रत रहता है, वो सुबह के विशाल भंडारे में शामिल होकर व्रत को तोड़ते है। इस प्रकार यह प्रक्रिया पूर्ण की जाती है।

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यात्रा और पहुंच

कमलेश्वर महादेव मंदिर पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है, जो लगभग 280 किलोमीटर दूर है। जहा रास्ते में कोटद्वार से हो कर आना पड़ता है। यहाँ से हर रास्ते पर प्राक्रतिक सौन्दर्य से भरपूर रास्तो का अलग ही आनंद लेते हुए पौड़ी से श्रीनगर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। देहरादून हवाई अड्डा यहां से करीब 300 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

  • आने का सबसे अच्छा समय: बैकुंठ चतुर्थदर्शी और सावन का महीना।
  • ठहरने की सुविधा: श्रीनगर गढ़वाल में कई धर्मशालाएं और होटेल उपलब्ध हैं।

निष्कर्ष

कमलेश्वर महादेव मंदिर न केवल धार्मिक स्थल ही नहीं बल्कि प्राक्रतिक प्रेमियों और इतिहास में रूचि रखने वालो के लिए है । यह मंदिर भगवान शिव की महिमा और गढ़वाल की संस्कृति का अनोखा संगम है। अगर आप आध्यात्मिक शांति और प्राकृतिक सुंदरता का अनुभव करना चाहते हैं, तो इस मंदिर की यात्रा अवश्य करें।

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