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Kedarnath Dham : इतिहास, महत्व और प्राकृतिक सुंदरता

kedarnath dham

Kedarnath Dham: यात्राओ में प्राकृतिक खूबसूरती की बात की जाय तो उत्तराखंड का नाम न आये ऐसा नहीं हो सकता और जहा उत्तराखंड की बात आती है तो सबसे पहले उत्तराखंड की चार धाम यात्रा का ध्यान आकर्षित करता है। क्यूंकि Kedarnath Dham के चारो तरफ खूबसूरत नज़ारे और बर्फ से ढके हिमालय पर्वतो की श्रखलाये है। 

यह हिन्दू धर्म का यह सबसे पवित्र और प्राचीन तीर्थ स्थलों में से एक माना जाता है। जो उत्तराखंड के देवप्रयाग जिले में  स्थित है, यहाँ दर्शन करने केवल उत्तराखंड से ही नही बल्कि देश-विदेश से भी श्रद्धालुओ का अवागमन रहता है। 

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केदारनाथ धाम (Kedarnath Dham) 12 ज्योतिर्लिंगों  में से भगवान शिव को समर्पित है। ऐसा कहा जाता है कि केदारनाथ को पांडवों के पुत्र महाराजा जन्मेजय ने बनवाया था। कहा जाता है कि यहाँ सीधे स्वर्ग से हवा आती है। ऐसे ही ना जाने कितने रहस्य और इतिहास जुड़े है इस मंदिर से चलिए जानते है पहाड़ी सुविधा के माध्यम से इस मंदिर के बारे में।

केदारनाथ(Kedarnath Dham) मंदिर का इतिहास और पौराणिक महत्व

Kedarnath Dham का इतिहास पौराणिक कथाओं और ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ा है। ऐसा माना जाता है कि पांडवों के पोत्र राजा जन्मेजय ने इस मंदिर के निर्माण में अपना योगदान दिया साथ ही पूरा केदार भी दान में दे दिया। तीर्थ पुरोहित केदारनाथ जी के प्राचीन ब्रामण है, जो की राजा जन्मेजय ने ही इनके पूर्वजो को यह पूजा करने का अधिकार दिया था। तब से यहा देश दुनिया से श्रद्धालु ओ की भीड़ रहती है।

मंदिर को  8वीं शताब्दी में आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा पुन: निर्माण करवाया गया। मंदिर के पत्थरों की संरचना और इसे बनाने की तकनीक आज भी एक रहस्य है। कहा जाता है पांडव महाभारत का युद्ध करने के बाद अपने पापो का प्रायश्चित करने के लिए यहा आये थे। जिससे भगवान शिव ने यहा आकर उन्हें दर्शन दिए थे।

हिमालय के केदार शृंग पर भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण ऋषि कठोर तपस्या कर रहे थे। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके आग्रह पर ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा के लिए वहां वास करने का वरदान दिया। यही पवित्र स्थल आज केदारनाथ के रूप में जाना जाता है।

ऐसा भी माना जाता है कि जो श्रद्धालु यहाँ केदार बाबा के दर्शन कर लेता है उसे बद्रीनाथ धाम पर भी दर्शन कर लेने चाहिए क्यूंकि इसके बिना यह यात्रा अधूरी मानी जाती है

पंचकेदार की कथा

पंचकेदार की कथा महाभारत के युद्ध और पांडवों के प्रायश्चित से जुड़ी है। महाभारत के युद्ध में विजयी होने के बाद पांडवों ने भ्रातृहत्या और अपने कर्मों के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शंकर की आराधना करने का निश्चय किया।

भगवान शंकर का छिपना और पांडवों का खोज

भगवान शंकर पांडवों से रुष्ट थे और उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे। इसलिए वे काशी से अंतर्ध्यान होकर हिमालय के केदार शृंग पर जा बसे। पांडवों ने भगवान शंकर की खोज जारी रखी और आखिरकार केदार तक पहुंच गए।

बैल का रूप धारण करना

भगवान शंकर ने बैल का रूप धारण कर लिया और अन्य पशुओं के झुंड में जा मिले। पांडवों को संदेह हुआ, और भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों के बीच पैर फैला दिया। सभी पशु-बैल निकल गए, लेकिन बैल रूपी भगवान शंकर भीम के पैरों के नीचे से नहीं निकल पाए।

पांडवों की भक्ति और शंकर का प्रकट होना

भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ को बलपूर्वक पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति और दृढ़ संकल्प से प्रसन्न होकर प्रकट हुए और उन्हें पापमुक्त कर दिया। यह बैल की त्रिकोणीय पीठ केदारनाथ में पूजी जाती है।

पंचकेदार का महत्व

भगवान शंकर के बैल रूप में अंतर्ध्यान होने के बाद उनके शरीर के अलग-अलग हिस्से अलग स्थानों पर प्रकट हुए।

  1. केदारनाथ: बैल की पीठ।
  2. तुंगनाथ: शिव की भुजाएं।
  3. रुद्रनाथ: मुख।
  4. मद्महेश्वर: नाभि।
  5. कल्पेश्वर: जटा।

इन पांच स्थानों को मिलाकर पंचकेदार कहा जाता है। प्रत्येक स्थान पर भगवान शिव के मंदिर बने हुए हैं, जो श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत पवित्र माने जाते हैं।

मंदिर की वास्तुकला

केदारनाथ मंदिर वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण है। मंदिर को कठोर और ठंडे वातावरण को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है। इसमें ग्रे पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है, जो बेहद मजबूत हैं। मुख्य गर्भगृह में भगवान शिव का शिवलिंग स्थित है, जिसे स्वयंभू (प्राकृतिक रूप से निर्मित) माना जाता है।

केदारनाथ यात्रा का मार्गदर्शन

कैसे पहुंचे?

हेलीकॉप्टर सेवा

गौरीकुंड से केदारनाथ तक के लिए हेलीकॉप्टर सेवा भी उपलब्ध है। यह सेवा समय बचाने और वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक सुविधाजनक विकल्प है।

केदारनाथ में घूमने के अन्य स्थान कौन-कौन से हैं?

केदारनाथ धाम के आसपास का क्षेत्र प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है। यहाँ की प्रमुख जगहें हैं:

  2013 की आपदा के दौरान केदारनाथ मंदिर पर क्या प्रभाव पड़ा?

2013 में उत्तराखंड में आई भयंकर बाढ़ ने केदारनाथ धाम को बुरी तरह प्रभावित किया। यहा के स्थानीय गाँवों में भी भारी नुक्सान देखने को मिला। मंदाकिनी नदी की प्रचंड धारा ने मंदिर के चारों ओर तबाही मचाई, लेकिन मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ। इस चमत्कार को लेकर आज भी चर्चा होती है। आपदा के बाद सरकार और स्थानीय प्रशासन ने मंदिर और इसके आसपास के क्षेत्र का पुनर्निर्माण किया।

केदारनाथ यात्रा का सबसे अच्छा समय क्या है?

केदारनाथ की यात्रा मई से अक्टूबर के बीच करना सबसे उपयुक्त है। सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण मंदिर बंद रहता है। हालाँकि यहा हर समय ठण्ड का मौसम रहता है

क्या केदारनाथ यात्रा के लिए विशेष तैयारी करनी चाहिए?

उत्तर: हां, यात्रा के लिए गर्म कपड़े, मजबूत जूते, और प्राथमिक चिकित्सा किट रखना जरूरी है। साथ ही, ट्रेक के दौरान आराम करने और जलपान करने का ध्यान रखें।

धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

केदारनाथ धाम को हिंदू धर्म में मोक्ष प्राप्ति का स्थान माना जाता है। मान्यता है कि यहां भगवान शिव की पूजा करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं और उसे जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है। यहां आयोजित होने वाली सुबह और शाम की आरती भक्तों को दिव्यता और आत्मिक शांति का अनुभव कराती है।

यात्रा के लिए उचित समय और तैयारी

निष्कर्ष

अगर आप प्रक्रति और अध्यात्मिक जीवन लेना चाहते है तो केदारनाथ धाम धार्मिक और प्राकृतिक दृष्टि से एक अद्वितीय स्थान है। जहा यात्रा करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक ऊर्जा और प्रकृति के साथ एक गहरा जुड़ाव महसूस कराती है। हालाँकि 18 कि0मी0 पैदल मार्ग है जिससे आपको लगभग 6-8 घंटे का समय लग जाता है। यदि आप अपनी जिंदगी में एक बार भी इस स्थान पर जाते हैं, तो यह अनुभव आपको जीवनभर प्रेरणा देता रहेगा।

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