हर्षिल (Harsil Valley) उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में एक गाँव के रूप में बसा हुआ है। यह अपनी खूबसूरती और पर्यटन क्षेत्र के लिए काफी प्रसिद्ध है। हर्षिल में देवदार के पेड़, बर्फ की पहाडिया साथ में बहती हुई भागीरथी नदी और अनेक झरने अपनी ओर बहुत आकर्षित व करता है। ज्यादातर लोग गंगोत्री यात्रा करते समय हर्षिल की खूबसूरती को देखकर यहाँ रूक जाते है। दोस्तों अगर आप हर्षिल घूमने का मन बना रहे है तो इस इस लेख में बने रहे साथ ही जानेंगे कुछ अनसुने से तथ्य हर्षिल घाटी के बारे में।
आखिर हर्षिल (Harsil Valley) कैसे प्रसिद्ध हुआ
19वी सदी में फ्रेडरिक विल्सन इंग्लैंड वासी जो कि मसूरी घूमते घूमते हर्षिल कि घाटियों तक पहुँच गये। उनको यह घाटी इतनी पसंद आई की उन्होंने यहाँ बसने का मन बना लिया। फ्रेडरिक विल्सन ने यहाँ पहली बार लोंगो को सेब और राजमा की खेती शुरू करना सिखाया।
ये भी माना जाता है कि वे उत्तराखंड के कठिन इलाकों में वनों का सही तरीके से इस्तेमाल करने और कीमती लकड़ी को नदियों के जरिए मैदानों तक पहुंचाने वाला पहला व्यक्ति था। भागीरथी की तेज धारा के सहारे बहाकर वो अपनी लकड़ी को हरिद्वार तक भेजता था, जो वैज्ञानिक तरीके से वनों के दोहन में एक बड़ी उपलब्धि थी।
फ्रेडरिक विल्सन ने पहाड़ों में पुराने रास्तों को बदलकर नए रास्ते बनाये
विल्सन ने पहाड़ों में पुराने रास्तों को बदलकर नए रास्ते बनाये ताकि उसका काम आसान हो सके। उसने इन रास्तों पर पुल बनाए। हर्षिल, काठबंगला, धरासू, धनोल्टी, काणाताल, झाल की और मसूरी में बंगले बनवाए। उसमें जिन रास्तों को विकसित किया, उन्हें विल्सन मार कहा गया। इन रास्तो पर दुकानें भी खुलने लगी और उनकी अच्छी कमाई होने लगी थी। विल्सन का यहाँ ऐसा वर्चस्व हो गया और हरिद्वार पार तक इनका प्रचलन हो गया था। स्थानीय लोग विल्सन की मुद्रा को व्यावहारिक और किफायती बताते हैं। उसे सोने की चिड़िया कहती थी। यहाँ के लोग उसे अधिकतर फुल सिंह साहब के नाम से जाने लगे थे।
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विल्सन जब हर्षिल घाटी (Harsil Valley) में आया उस दौर में हर्षिल के हालत रहने योग्य नहीं था। तब यहाँ की पहाड़ी भूमि पर ना मात्र कि खेती हुआ कराती थी और जंगलों का किसी भी प्रकार का दोहन नहीं होता था। लोग सिर्फ पापड़ा यानी कोट और रामदाना यानी चौलाई जैसी फसलों पर निर्भर थे, लेकिन विल्सन ने यहाँ बागवानी और उन्नत खेती की शुरुआत की। उसने सेब, आलूबुखारा, खुमानी और नाशपत्ती के बगीचे लगाए और अपने हर्षल वाले बंगले के सामने एक बड़ा बगीचा बनाया। उसमें लगाए पेड़ सालों तक फल देते रहे। विल्सन से प्रेरणा लेकर दूसरे लोगों ने भी यहाँ फलों के पेड़ लगाये। मुखवा के लोग बताते हैं की आजकल उगाए जा रहे हैं।
फ्रेडरिक विल्सन ने देवता की परीक्षा ली
यहाँ मुख्य सोमेश्वर मंदिर है जो कि धार्मिक अनुष्ठानों और सामाजिक समारोह का मुख्य केंद्र है। इस मंदिर की पूजा और देखभाल के लिए हर घर से धन जमा किया जाता था।
एक बार हाँ मुख्य सोमेश्वर मंदिर में एक धार्मिक समारोह के दौरान पंडित पर देवता का अवतरण हुआ। हालांकि विल्सन को मंदिरों में कोई खास आस्था नहीं थी। विल्सन ने इस मौके का फायदा उठाते हुए देवता की शक्ति की परीक्षा लेने की सोची। उसने अपनी मुट्ठी में कुछ छिपाया और देवता से पूछा कि मेरी मुट्ठी में क्या है? देवता ने विल्सन की एक मुट्ठी की तरफ इशारा किया और फिर नाचते हुए दर्शकों के घेरे से बाहर चला गया और खुमानी के पेड़ के पास पहुंचा और विल्सन की दूसरी मुट्ठी की तरफ इशारा किया। फिर उसने एक महिला की नाक की सोने की नत्थ की तरफ इशारा किया। जब विल्सन ने अपनी दोनों मुठिया खोली तो सब हैरान रह गए कि उसकी एक मुट्ठी में खुमानी की गुठली और दूसरी में सोने की नत्थ। विल्सन ने तुरंत देवता को अशरफी भेंट कर दी, जिसे बाद में मंदिर में रख दिया गया।
इसके अलावा विल्सन ने मंदिर में एक बड़ा घड़ियाल और कई अन्य चीजें भी भेंट की। ये घंडियाल हर्षिल के बंगले में लटका रहता था और काम के घंटों का संकेत देने के लिए बजाया जाता था। गंगोत्री मंदिर में भी विल्सन की दी हुई एक तलवार आज भी देखी जा सकती है। मुखवा और आसपास के गांव के लोगों के लिए जहाँ विल्सन का आगमन एक वरदान था।
विलसन मुखवा के छोटे से गांव का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका था। वो उच्च जातियों के लोगों से भी घुलने मिलने लगा था।और दासों के साथ तो उसके घनिष्ठ संबंध बन ही चूके थे।
हर्षिल की अनेक कहानिया
हर्षिल की कहानिया अपने आप में बहुत बड़ी कहानी और इतिहास है जो लोग हर्षिल घुमाने जाते है उनको एक से बढ़कर एक कहानिया मिल जाती है। जहा विल्सन ने हर्षिल में रहकर दिन बा दिन इतिहास बनता गया वही हर्षिल पर्यटन के क्षेत्र में आगे रहा। यहाँ की खूबसूरती को देखकर खो जाने मन करता है।
हर्षिल में “राम तेरी गंगा मैली” जैसी फिल्म कि शूटिंग बहुचर्चित रही। जिसने पर्यटन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। 2019 में नरेन्द्र मोदी फिल्म की बायोपिक भी हर्षिल के सुंदर पहाड़ो में हुई।
दोस्तों अगर यह लेख आपको पसंद आने के साथ पहली बार हर्षिल के बारे में यह जानकारी मिली हो तो कृपया इसे उत्तराखंड वासियों को जरूर बताये।