Uttarakhand Jagar: दोस्तों पहाड़ो पर ‘जागर गीतो’ का लगना कोई बड़ी बात नहीं है। जो लोग देवभूमि से है और इस परम्परा से अनभिज्ञ है या उन लोंगो को इस परम्परा के बारे में पता होने के बाबजूद भी ज्यादा पता नहीं है तो बता दे कि आप लोंगो को जानकर हैरानी होगी कि जगर गीतों के माध्यम से जगरिया (जो जागर लगता है ) वो देवताओ और आत्माओ को बुलाने का कार्य करता है । Pahadi Suvidha आप लोंगो को इस परम्परा को संक्षेप में बताने कि कोशिस कर रहे है।
उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। जिसे देवताओ कि भूमि भी कहा जाता है। यहाँ देवताओ को जगाने के लिए जागरो का आयोजन किया जाता है। जागर उत्तराखंड (Uttarakhand Jagar) की प्रसिद्ध परम्परा है, जो एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और मृतक आत्माओं के बीच एक सेतु का काम करता है। यह पूर्वजों की पूजा का एक रूप है और एक अनुष्ठान भी है। यह प्रथा देवभूमि के पूर्वजो से चलती आ रही है। Pahadi Suvidha के माध्यम से हम आप लोंगो के बीच ऐसी परम्परा को उजागर कर रहे है जो कि लोंगो के वर्तमान, भूतकाल व भविष्य से जुडी समस्याओ का समाधान किया जाता है।
जागर का परिचय
Uttarakhand में, Jagar सिर्फ़ एक धार्मिक समारोह से कहीं ज़्यादा है। जागर के दौरान, स्थानीय देवताओं और पूर्वजों का आह्वान करते हैं, जो कि उनकी आत्माओ को कहानियो को गायन के रूप में बताते है । मान्यता है कि ये आत्माएँ समुदाय का मार्गदर्शन और सुरक्षा करती हैं। इस अनुष्ठान में अक्सर लोकगीत गाए जाते हैं, जिन्हें ‘जागर गीत’ के नाम से जाना जाता है, जिसमें देवी-देवताओं और महान नायकों की कहानियाँ सुनाई जाती हैं। उत्तराखंड के कुछ क्षेत्रों में इस परम्परा को अलग-अलग रूप में मनाते है। आज भी इस महत्व को आने वाली नयी पीडियो तक पहुचाने के लिए शहरों से लोग अपने गाँवों में इस परम्परा को मनाने के लिए एकत्रित होते है।
समारोह की शुरुआत
जागर समारोह आमतौर पर शाम को अनुष्ठान दीप और धूप जलाने के साथ शुरू होता है और रात भर जारी रह सकता है, जिससे पवित्र स्थल में उपस्थिति लोंगो से भरा माहौल बना रहता है। कंही – कंही जगहों पर दिन में भी इसका समारोह किया जाता है। इसके बाद ‘जागर गीत’ (जागर के गीत) गाए जाते हैं, जिनकी शुरूवात शिव भगवन के डमरू व कांशी कि थाली बजा कर किया जाता है। जिसका नेतृत्व ‘जगरिया’ (प्रमुख गायक) करता है, सर्वप्रथम जगरिया गाँव के कुलदेवता को बुलाने का कार्य करते है कहा जाता है कि बिना कुलदेवता के अन्य देवी देवता भी नहीं नाचते है, उसके बाद अन्य देवी-देवताओं और महान नायकों की कहानियायो को सुनाया जाता है। ये गीत अनुष्ठान का एक अनिवार्य हिस्सा हैं, क्योंकि वे आत्माओं को बुलाने का कार्य करते हैं। जागर गाते समय हरिद्वार से लाया गया गंगाजल, गाय का मूत्र और गाय का दूध जो इस स्थल के लिए पवित्र माने जाते है, उसे कुल पंडित ( हमारे पूर्वजो के समय के पंडित होते है ) के सामने रखा जाता है, जो मंत्रो का उच्चारण कर उस स्थल को पवित्र बनाते है।
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आत्माओं का आह्वान
जैसे-जैसे गीत आगे बढ़ते हैं, डंगरिया एक समाधि जैसी अवस्था में प्रवेश करना शुरू कर देता है। इसे जागर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस समाधि के दौरान, देवताओं या पूर्वजों की आत्माएं डंगरिया पर कब्जा कर लेती हैं। इसके बाद, आत्मा के प्रभाव में, प्रभावित माध्यम अनुष्ठानिक नृत्य, हरकतें और मंत्रोच्चार करता है
बातचीत और मार्गदर्शन
प्रेतबाधा के दौरान, डंगरिया प्रतिभागियों से संवाद कर सकता है, मार्गदर्शन, भविष्यवाणियाँ या उनकी समस्याओं का समाधान दे सकता है। इस बातचीत को अक्सर दिव्य परामर्श के रूप में देखा जाता है, और समुदाय के सदस्य आत्मा से आशीर्वाद, सलाह या अपनी चिंताओं के उत्तर मांगते हैं। प्रेतबाधा के दौरान माध्यम उपचार या सुरक्षा के कार्य भी कर सकता है।
आध्यात्मिक पहलू
जागर अक्सर पूर्वजों और देवताओं का आशीर्वाद पाने, बुराई को दूर करने या व्यक्तिगत और सामुदायिक मुद्दों को हल करने के लिए किया जाता है। अनुष्ठान के दौरान, देवता या पूर्वजो की आत्मा किसी दूसरे ब्यक्ति में प्रवेश करती है, जिसे ‘डंगरिया’ के रूप में जाना जाने वाला व्यक्ति, जो समुदाय या व्यक्तियों द्वारा कामना की जाने वाली समस्याओं का मार्गदर्शन या समाधान प्रदान करता है।
सामाजिक महत्व
जागर न केवल एक धार्मिक प्रथा है, बल्कि एक सामाजिक समागम भी है, जहाँ लोग एक साथ आते हैं, जिससे सांप्रदायिक बंधन मजबूत होता है। यह उत्तराखंड की मौखिक परंपराओं और लोककथाओं को संरक्षित करने और उन्हें पीढ़ियों तक आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जागर के दौरान सुनाए जाने वाले गीत और कहानियाँ सांस्कृतिक इतिहास को जीवित रखती हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि युवा पीढ़ी अपनी जड़ों से जुड़ी रहे।
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अनुष्ठान का समापन
जागर समारोह का समापन आत्माओं को सम्मानपूर्वक विदाई देने के साथ होता है। डंगरिया धीरे-धीरे सामान्य अवस्था में लौट आते हैं, और अनुष्ठान के दौरान चढ़ाए गए प्रसाद को प्रतिभागियों के बीच ‘प्रसाद’ (पवित्र भोजन) के रूप में वितरित किया जाता है। जागर आमतौर पर समुदाय की भलाई और आत्माओं की संतुष्टि के लिए प्रार्थना के साथ समाप्त होता है।
निष्कर्ष
Uttarakhand में Jagar का महत्व आध्यात्मिकता और संस्कृति के मिश्रण की क्षमता में निहित है, जो एक अनूठी परंपरा का निर्माण करता है जो समय की कसौटी पर खरा उतरा है। यह आस्था, समुदाय और विरासत का उत्सव है, जो इसे उत्तराखंड के लोगों की सांस्कृतिक पहचान का अभिन्न अंग बनाता है।
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