चार धाम यात्रा की बात करे तो यमुनोत्री धाम (Yamunotri Dham) इनमे से एक है। जहा उत्तराखंड, देवभूमि के नाम से जाना जाता है, उनमे से Yamunotri Dham एक महत्वपूर्ण धाम है, जो यमुना नदी के उद्गम स्थल के रूप में जाना जाता है। इसे जमुनोत्री के रूप में भी जाना जाता है। हिमालय की ऊँचाई से 3235 मी0 पर स्थित यह स्थान श्रद्धालुओं और प्रकृति प्रेमियों के लिए विशेष महत्व रखता है।
जहा गंगोत्री धाम स्थल गंगा नदी पर होता है और यमुनोत्री धाम (Yamunotri Dham) का उद्गम यमुना नदी पर होता है। ये दोनों धाम उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में हैं। यह गढ़वाल हिमालय के सबसे पश्चिमी मंदिरों में से एक है जो बंदरपूंछ पर्वत के नजदीक स्थित है।
इस पावन धाम में मुख्य आकर्षण का केंद्र यहाँ के पवित्र गर्म पानी के झरने है। जो जानकी चट्टी से 6 किमी की दूरी पर है।
पहाड़ी सुविधा के माध्यम से हम इस लेख में हम Yamunotri Dham के इतिहास, महत्व, प्राकृतिक सुंदरता और यहाँ तक पहुँचने के मार्ग को विस्तार से समझेंगे।
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यमुनोत्री धाम (Yamunotri Dham) का धार्मिक महत्व
हिंदू धर्म में यमुनोत्री धाम (Yamunotri Dham) को विशेष स्थान प्राप्त है। यमुना नदी को गंगा की बहन और सूर्य देव की पुत्री माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यमराज जो मृत्यु के देवता हैं, जब अपनी बहन यमुना के घर गए थे तब यमुना जी ने उनका खासा ध्यान रखा जिससे यमराज बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंने अपनी बहन को वरदान दिया कि जो इस धाम पर स्नान करेगा, उसे मृत्यु के समय कष्ट नहीं सहना पड़ेगा। यही कारण है कि लाखों श्रद्धालु हर साल यमुनोत्री (Yamunotri) की यात्रा करते हैं और यहाँ स्नान कर अपनी आत्मा को पवित्र करते हैं।
यमुनोत्री मंदिर का इतिहास
एक बार यहाँ पर भूकम्प से पूरा मंदिर तबाह हो गया जो बाद में 19वीं शताब्दी में जयपुर की रानी गुलेरिया ने इसे पुन: निर्माण करवाया। असिता ऋषि को मंदिर का खोज के लिए मानते है कहा जाता है कि अशित ऋषि प्रतिदिन यहाँ स्नान करने कालिंदी पर्वत पर जाते थे जहा पर यमुना (Yamuna) का गंगा और यमुना में उद्गम माना जाता है। जब वे वर्द्ध अवस्था में चले गये तब वे जाने में असमर्थ हो गए तब उन्होंने यही पर माँ यमुना (Yamuna) का तप किया जिससे माँ यमुना ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिये। जिसके बाद माँ ने अपनी एक धरा यही पर प्रवाहित की जो आज तक बहती रहती है। और कहा जाता है माँ तब से यही विद्यमान हो गयी।
कथा के अनुसार, यमुनोत्री न केवल यमुना नदी का स्रोत है, बल्कि यह गंगा और यमुना दोनों की पवित्रता का प्रतीक भी है।
दिब्य शिला की क्या मान्यता है
पास ही में एक दिब्य शिला है कहा जाता है कि माँ यमुना ने अपने पिता सूर्य देव की यही पर तपस्या की और तब से वे यहाँ पर पिंड के रूप में विद्यमान है। और कहा जाता है कि मंदिर की पूजा करने से पहले इस पिंड के पूजा करते है।
यमुनोत्री धाम में सूर्य कुंड का महत्व क्या है
इसी मंदिर के बगल में एक कुण्ड है जो की स्वयं सूर्य देव के रूप में है जिन्होंने अपने पुत्री के तप से प्रसन्न होकर यही पर खौलते हुए पानी के रूप में विद्यमान हो गये। जो आज भी सूर्य कुण्ड के नाम से जाना जाता है।भक्तगण अपने साथ पोटली में आलू चावल लाकर इस कुण्ड में डालते है जो चंद मिनट में उबल जाते है जो कि एक चमत्कार से कम नहीं है।
यमुनोत्री मंदिर
यमुनोत्री मंदिर नदी के स्रोत के पास 3,235 मीटर (10,614 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है। टिहरी गढ़वाल के राजा सुंदरसन शाह जिन्होंने 1839 में मंदिर का निर्माण कराया था। इससे पहले इस स्थान पर एक छोटा मंदिर था। दुबार से टिहरी गढ़वाल के महाराजा प्रताप शाह ने वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण ने करवाया। माँ यमुना की प्रतिमा यहाँ काले संगमरमर से बनी है। यमुना की मंदिर के पास दिव्य शिला और सूर्य कुंड जैसे धार्मिक स्थल हैं।
यमुनोत्री मंदिर की वास्तुकला बेहद साधारण और पवित्र है। मंदिर के आसपास के प्राकृतिक दृश्य अत्यंत मनमोहक हैं। हर वर्ष ग्रीष्मकाल में मंदिर के कपाट खुलते हैं और तीर्थयात्री यहाँ आकर देवी यमुना का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
यमुनोत्री मंदिर यात्रा
जब आप यमनोत्री धाम के नज़दीक पहुचते हो तब एक गेट जो कि माँ यमनोत्री का प्रवेश द्वार है। जिसकी एक तरफ यमराज की मूर्ति है और दूसरी तरफ शनि देव की मूर्ति और बीचों बीच माँ यमुना की मूर्ति की प्रतिमा है।
मंदिर की सामने की पहाडियों से 7 झरने बहते रहते है जो दिखने में बेहद ही खूबसूरत लगते है मानो यह स्थान किसी जन्नत में हो।
देहरदून से 200 किमी जानकी चट्टी से ६ किमी दूरी पर है। यात्रा के दौरान पुरे रास्ते में माँ यमुनोत्री नदी बहती रहती है। जानकी चट्टी की यात्रा करने पर रास्तो मे ही झरने बहते रहते है जो अपने आप में अद्भुद है बारिश न भी पड रही हो तब भी आपको छाता खोलना पड़ सकता है। क्यूंकि झरनों का पानी रास्तो के ऊपर से गिरता रहता है।
माँ के यहाँ कितने रूप है
माँ के यहाँ पर दो रूप है एक शीतल और एक है तप्त रूप ! जो शीतल रूप है वो सप्त ऋषि कुण्ड लगभग 11-12 किमी दूर से आता है और जो तप्त रूप है वो यही पहाडियों से निकलकर आता है जो स्वयं सूर्य देव की पुत्री के रूप में विद्यमान है।
पुराणों के अनुसार श्री राम भरोसे दास जी की प्रतिमा
यहाँ पास में ही हनुमान मंदिर भी है जो पुरे साल भर खुला रहता है मदिर के अंदर एक महराज की प्रतिमा दिखाई देती है जिन्हें श्री राम भरोसे दास के नाम से जाना जाता था कहा जाता है की बाल्य काल की अवस्था में ही वे यह आ गए थे और उन्होंने कभी भी सामने बह रही यमुना नदी को पर नहीं किया।
यमुनोत्री धाम में कौन से कुण्ड में भक्तगण स्नान करते है
मंदिर के निचे की और एक गौरी कुण्ड है जहा तप्त कुण्ड का पानी भेजा जाता है जिसमे सारे भक्तगण यही स्नान करते है।
यमुना में स्नान करना पवित्र क्यों माना जाता है।
सूर्य देव की दो संताने हुयी जो यमराज और यमुना के रूप में हुयी दोनों भाई बहन में बहुत प्रेम था एक दिन भाई यमराज अपनी बहन यमुना के घर गए जहा उन्होंने अपने भाई का बहुत आदर सत्कार किया जिससे यमराज प्रसन्न होकर माँ यमुना को वरदान दिया की जो कोई भी भक्त इस पावन जल से स्नानं करेगा वो अकाल मृत्यु से बच जायेगा और उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी। यही विशेष दिन भैया दूज के दिन मनाया जाता है। इसिलिय इस दिन माँ यमुना में स्नान करना पवित्र माना जाता है।
धार्मिक कार्य: यहाँ पर चूड़ाकर्म व अन्य धार्मिक कार्य सम्पन्न किया जाता है
यमुनोत्री में रुकने के लिए कौन-कौन से आश्रम है
यहाँ रुकने के लिए पास में ही 3 आश्रम है जो की श्रद्धालुओ के लिए ही बनाया गया है।
- रामानंद आश्रम
- कालिंदी आश्रम
- यमुना आश्रम
अगर आप लोगो ने केदारनाथ के दर्शन कर लिए होंगे तो उसके मुकाबले यह ट्रैक आप लोग आसानी से पार कर लेंगे क्यूंकि सड़क से यहाँ तक का सफ़र मार्ट 4-5 किमी का है।
यमुनोत्री की यात्रा करने का सही समय
आप अगर यमुनोत्री के दर्शन करने जा रहे है तो आप अप्रैल-मई के माह में यहाँ के कपाट खोले जाते है जो अक्षय तृतीय के पावन पर्व पर खुलते है। और बाद में अक्टूबर-नवम्बर में कपाट बंद कर दिए जाते है। वैसे तो अप्रैल-मई के माह में उत्तरकाशी गर्म रहता है तो आप ये न समझे कि यमुनोत्री तक गर्म होगा यमुनोत्री धाम पहुचने तक वहा का मौसम बेहद ही ठंडा रहता है। इसीलिए सालाह है कि कुछ गर्म कपडे भी साथ में ले जाये।
यात्रा का अनुभव
यहाँ की यात्रा हमेशा से अत्यंत रोमांचक और अद्वितीय होती है। यहाँ की प्राक्रतिक सौन्दर्य को देखने और यमुना में स्नान्न करने के लिए तीर्थयात्री दूर-दूर से दर्शन करने आते है। तीर्थयात्री पैदल यात्रा के माध्यम से मंदिर तक पहुँचते हैं, और इस यात्रा के दौरान उन्हें हिमालय की पर्वतमालाओं और हरियाली का अद्भुत अनुभव होता है।
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निष्कर्ष
यमुनोत्री केवल एक तीर्थस्थल ही नहीं, बल्कि यह हिंदू धर्म में आस्था और प्रकृति की सुंदरता का प्रतीक है। यह स्थान अपनी धार्मिक और प्राकृतिक महत्वता के कारण हर वर्ष हजारों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। देवी यमुना का आशीर्वाद प्राप्त करने और हिमालय की पवित्रता का अनुभव करने के लिए यमुनोत्री एक अद्वितीय स्थान है।
ऐसे ही अद्वितीय स्थानो के बारे में पढ़ते रहिये पहाड़ी सुविधा