दोस्तों, शहरों की तेज़ रफ्तार जिंदगी में जब हर कोई आगे बढ़ने की होड़ में अपनी संस्कृति और जड़ों को पीछे छोड़ देता है, तब कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपनी मिट्टी की खुशबू को फिर से जीना चाहते हैं। ऐसी ही एक कहानी है अरविंद नैथानी की, जिन्होंने कॉर्पोरेट की चकाचौंध को छोड़कर अपने गांव लौटने का साहसी फैसला लिया।
अरविंद नैथानी ने एमबीए की पढ़ाई के बाद एक शानदार कॉर्पोरेट करियर शुरू किया। लेकिन कुछ समय बाद ही उन्हें महसूस हुआ कि वे अपने असली ‘मैं’ से बहुत दूर निकल आए हैं। गांव की वो सुबहें, मिट्टी की सौंधी खुशबू, लोकगीतों की मिठास, और पारंपरिक व्यंजन, इन सबकी याद उन्हें अंदर तक झकझोरने लगी।
उन्हें एहसास हुआ कि अगर समय रहते कदम नहीं उठाया गया, तो हमारी पहाड़ी संस्कृति कहीं खो जाएगी। और यहीं से जन्म हुआ — डिंडयाली होमस्टे एंड कैफे का।
डिंडयाली होमस्टे एंड कैफे | Dindyali Homestay And Cafe
2020 में अरविंद ने अपनी पत्नी के साथ मिलकर देहरादून के पास एक ऐसी जगह की शुरुआत की जो सिर्फ खानपान का ठिकाना नहीं, बल्कि संस्कृति से जुड़ने का माध्यम है। “डिंडयाली” नाम उन्होंने गांव की उस जगह से लिया, जहां लोग दिनभर की थकान के बाद हुक्का पीते हुए, किस्से-कहानियों के बीच रिश्तों को मजबूत किया करते थे। आज, डिंडयाली कैफे में कदम रखते ही आप उत्तराखंड की आत्मा को महसूस कर सकते हैं — लकड़ी के बने पारंपरिक घर, स्थानीय व्यंजन, और वो अपनापन जो आजकल की भागदौड़ में कहीं गुम हो चुका है।
दोस्तों ‘डिंडयाली’ सब्द तो कई गढ़वाली लोग जानते भी नहीं होंगे और कई लोग तो इसे पहली बार सुन रहे होंगे, ‘डिंडयाली’ नाम उत्तराखंड के गांवों में उस जगह को कहा जाता है जहां लोग मिलकर बैठते थे, हुक्का पीते थे, बातचीत करते थे। अरविंद ने इस पारंपरिक नाम को जीवित रखने का निर्णय लिया और कैफे में उसी पुराने जमाने की वाइब को दोबारा गढ़ा। उन्होंने गांव से पठाल, पारंपरिक बर्तन, वाद्ययंत्र, लकड़ियां, और बहुत कुछ मंगवाया। पठालों को लाने के लिए उन्हें प्रशासन से विशेष अनुमति भी लेनी पड़ी।
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पहाड़ी व्यंजनों की सौंधी खुशबू
जब भी कोई मेहमान उत्तराखंड की गोद में बसे गांवों या छोटे कस्बों की ओर रुख करता है, तो सिर्फ पहाड़ों की ठंडी हवा या हरियाली ही नहीं, बल्कि यहां के पारंपरिक व्यंजनों की सौंधी खुशबू भी उसे अपनी ओर खींच लाती है। यहां का भोजन सिर्फ पेट भरने का साधन नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और आत्मीयता का प्रतीक है।
उत्तराखंड के कुछ चुनिंदा स्थानों पर आज भी पारंपरिक चूल्हों पर खाना पकाया जाता है, जहां लकड़ी की धीमी आंच पर हर व्यंजन का स्वाद निखर कर आता है। डिंडयाली कैफे जैसे जगहों पर तो इस परंपरा को पूरे सम्मान के साथ निभाया जाता है। यहां आपको मंडुए की रोटी, झंगोरे की खीर, फाणा, चौसा, थिचवानी, भंगजीरे की चटनी, और लाल चावल जैसे व्यंजन परोसे जाते हैं, जो सीधे लोकसंस्कृति से जुड़े हुए हैं। हर एक व्यंजन न सिर्फ स्वाद में लाजवाब होता है, बल्कि वह आपकी सेहत का भी ख्याल रखता है। मंडुए की रोटी और झंगोरे की खीर में पोषण भरपूर होता है, वहीं फाणा और चौसा जैसे व्यंजन स्थानीय मसालों की खुशबू से भरपूर होते हैं।
यहां के भोजन का एक और खास पहलू है उसका परोसा जाना। खाने को पीतल के बर्तनों में परोसा जाता है, जिससे उसका पारंपरिक स्वाद बरकरार रहता है। और पानी? न कोई बोतलबंद मिनरल वॉटर, न ही फ्रिज का ठंडा पानी — यहां आपको शुद्ध प्राकृतिक जल पीतल के गिलास में परोसा जाता है, जो न सिर्फ शरीर को ठंडक देता है, बल्कि पुराने ज़माने की यादें भी ताजा कर देता है।
यहां की खास बात ये भी है कि आपको न तो कोल्ड ड्रिंक मिलेगा और न ही चाइनीज फूड या फास्ट फूड की भरमार। जो भी कुछ है, वो स्थानीय, मौसमी और पूरी तरह से देसी है। यह सिर्फ खाना नहीं, बल्कि एक अनुभव है — ऐसा अनुभव जो आपकी आत्मा तक को तृप्त कर देता है।
डेस्टिनेशन वेडिंग और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए बेहतरीन जगह
यह होमस्टे और कैफे केवल खाने-पीने तक सीमित नहीं है। यहां पारंपरिक पहाड़ी शादियों और अन्य कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है। उत्तराखंडी संगीत, सजावट और खानपान के साथ यह जगह डेस्टिनेशन वेडिंग के लिए भी एक आकर्षक विकल्प बन चुकी है। यह जगह डेस्टिनेशन वेडिंग के लिए भी मशहूर होती जा रही है। यहां उत्तराखंडी रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह कार्यक्रम करवाए जाते हैं, जो युवाओं को अपनी संस्कृति से जोड़ते हैं।
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पर्यटकों की राय
पंजाब से देहरादून घूमने आए भरत बताते हैं कि उन्होंने कई फूड व्लॉग्स में इस कैफे के बारे में देखा था, और यहां का अनुभव उनकी उम्मीद से कहीं बेहतर रहा। वह कहते हैं कि यहां का खाना हल्का, स्वादिष्ट और पूरी तरह घरेलू अनुभव देता है।
वहीं देहरादून निवासी नितिन बताते हैं कि वह अक्सर डिंडयाली कैफे आते हैं। उन्होंने यहां मंडुए की रोटी, भंगजीरा की चटनी, स्वाला, मटर की सब्जी और गांव का बिलाया हुआ सफेद ऑर्गेनिक मक्खन खाया, जो उन्हें बहुत पसंद आया। उन्हें यहां का खाना परोसने का पारंपरिक तरीका भी खूब भाया – पीतल के बर्तनों में और पत्तों पर रोटी रखकर सर्व किया जाता है।
कैसे पहुंचे डिंडयाली होमस्टे एंड कैफे?
अगर आप भी इस पारंपरिक पहाड़ी अनुभव का आनंद लेना चाहते हैं, तो देहरादून के घंटाघर से लगभग 17 किलोमीटर दूर स्थित सिरोन गांव तक का सफर तय करें। यहां पहुंचने के लिए रायपुर और थानो होते हुए आप इस मनोहारी स्थल तक पहुंच सकते हैं।
निकटतम एयरपोर्ट: 6km दूर
ऋषिकेश: 16km की दूरी पर
संपर्क करें:
👉 अरविंद नैथानी
📞 9927206555
निष्कर्ष
डिंडयाली होमस्टे एंड कैफे एक अनूठी पहल है, जो न केवल उत्तराखंड की संस्कृति को जीवित रखे हुए है, बल्कि नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने का कार्य भी कर रहा है। यह स्थान सिर्फ खाने का अनुभव नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और आत्मीयता से भरपूर एक जीवनशैली का अनुभव कराता है। यदि आप भी शहर की भागदौड़ से कुछ समय के लिए दूर जाना चाहते हैं और पहाड़ की सादगी व अपनापन महसूस करना चाहते हैं, तो डिंडयाली होमस्टे एंड कैफे आपकी अगली मंज़िल हो सकती है।
तो जब भी आप देहरादून आएं, Dindyali Homestay And Cafe में पहाड़ी मेहमाननवाज़ी का लुत्फ उठाना न भूलें।
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