उत्तराखंड, अपनी प्राकृतिक सुंदरता, सांस्कृतिक विरासत और अनोखे व्यंजनों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। उन्ही व्यंजनों में से “Kandali Ka Saag” की बात करे तो पहाड़ो पर कंडाली देखने को खूब मिल जाती है जिसे उत्तराखंड के पहाड़ी लोग खूब इस्तेमाल भी करते है। जहा बचपन में छोटे बच्चे, माँ-बाप का कहना नहीं मानते थे, तो कुछ माँ-बाप कंडाली से बच्चो को डराने का काम बखूबी करते थे। मै इसलिए कह रहा हू कि इसे बिच्छू घास के नाम से भी जाना जाता है। क्युकि यह घास बिच्छु के जैसा डंक लगता है, हालंकि इसके डंक में जहर नहीं होता लेकिन इंसानों के शरीर पर लगता है तो शरीर पर काफी दिनों तक झनझनाहट रहती है। चलिए “पहाड़ी सुविधा” के माध्यम से “Kandali Ka Saag” और कंडाली के बारे में और जानकारी को विस्तार से जानते है।
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क्या है कंडाली?
कंडाली, जिसे गढ़वाल क्षेत्र में कंडाली और कुमाऊं में सिसूंण कहा जाता है, का वैज्ञानिक नाम अर्टिका पर्वीफ्लोरा है। यह पौधा ‘अर्टिकाकेई’ वनस्पति परिवार से संबंधित है और इसकी पत्तियों पर छोटे-छोटे कांटे होते हैं। ये कांटे देखने में भले ही डरावने लगते हों, लेकिन इस पौधे में छुपे औषधीय गुण इसे सेहत के लिए बेहद लाभकारी बनाते हैं।
कंडाली के औषधीय गुण
उत्तराखंड की पहाडियों पर आसानी से उगने वाला कंडाली का साग स्वास्थ्य के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं है। इसे ज्यादातर सर्दियों में खाया जाता है, क्यूंकि इसकी तासीर बहुत ही गर्म होती है। इसके कुछ गुण इस प्रकार है –
- आयरन का भंडार: कंडाली की पत्तियों में आयरन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, जो खून की कमी को दूर करने में सहायक है।
- विटामिन और फाइबर से भरपूर: यह विटामिन-ए और फाइबर का अच्छा स्रोत है, जो पाचन तंत्र को मजबूत करता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
- पीलिया और पेट के रोगों में लाभकारी: इसका सेवन पीलिया, उदर रोग और पेट की समस्याओं में राहत देता है।
- मलेरिया का इलाज: विशेषज्ञों का मानना है कि मलेरिया के इलाज के लिए कंडाली बेहद उपयोगी है। यह एंटीबायोटिक और एंटीऑक्सीडेंट के रूप में काम करता है।
- जोड़ों के दर्द में राहत: अगर शरीर के किसी हिस्से में मोच आ गई हो या जकड़न महसूस हो रही हो, तो इसकी पत्तियों से तैयार अर्क का इस्तेमाल करें। यह जल्द आराम पहुंचाता है।
- किडनी और खांसी-जुकाम: कंडाली के सेवन से किडनी से जुड़ी बीमारियों और खांसी-जुकाम में भी फायदा होता है।
कंडाली का व्यंजन: एक स्वादिष्ट अनुभव
उत्तराखंड के लोग कंडाली का साग चपाती और भात (चावल) के साथ खाना पसंद करते हैं। यह व्यंजन ठंड के मौसम में शरीर को गर्म रखने में मदद करता है। इसके साथ ही, यह स्वाद में भी लाजवाब होता है। आइए जानते हैं इसे तैयार करने की विधि।
कैसे बनाएं कंडाली का साग?
- सामग्री:
- कंडाली की मुलायम पत्तियां
- सरसों का तेल
- जखिया (उत्तराखंड में पाया जाने वाला मसाला)
- लहसुन की कलियां
- हींग
- हरी मिर्च
- स्वादानुसार नमक
- बनाने की विधि:
- सबसे पहले कंडाली की पत्तियों को साफ करके अच्छे से झाड़ लें।
- इन्हें पानी में उबाल लें ताकि पत्तियों के कांटे हट जाएं।
- लोहे की कढ़ाई में सरसों का तेल गर्म करें और उसमें जखिया का तड़का लगाएं।
- इसमें लहसुन, हींग और हरी मिर्च डालें।
- उबली हुई कंडाली की पत्तियां डालकर हल्की आंच पर पकाएं।
- स्वादानुसार नमक मिलाकर इसे अच्छी तरह हिलाएं।
- आपका स्वादिष्ट कंडाली का साग तैयार है। इसे गर्मागर्म परोसें।
पारंपरिक व्यंजनों में कंडाली का महत्व
उत्तराखंड की पारंपरिक रसोई में कंडाली का विशेष स्थान है। पहाड़ों में रहने वाले लोग इसे सर्दियों में खूब पसंद करते है। यह व्यंजन न केवल स्वादिष्ट है, बल्कि ठंड के मौसम में शरीर को गर्म रखने का भी काम करता है।
अन्य लोकप्रिय पहाड़ी व्यंजन
उत्तराखंड के अन्य पारंपरिक व्यंजन भी अपनी सादगी और पौष्टिकता के लिए प्रसिद्ध हैं। इनमें शामिल हैं:
- काफली: पालक और गहत (कुलथ) से बना एक पौष्टिक व्यंजन।
- फाणु: गहत से तैयार दाल जैसा व्यंजन।
- झ्वली: पहाड़ी कढ़ी।
- कोदे की रोटी: मंडुवा (रागी) से तैयार की जाने वाली स्वादिष्ट रोटी।
- झंगोरे की खीर: झंगोरा (एक प्रकार का बाजरा) से बनी मीठी डिश।
- बाल मिठाई: पहाड़ी मिठाई, जिसे खोये और चीनी से बनाया जाता है।
- डुबुक: गहत की दाल से तैयार किया जाने वाला गाढ़ा व्यंजन।
ग्लोबल वार्मिंग का असर और कंडाली का अस्तित्व
जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के चलते कंडाली का अस्तित्व खतरे में है। पारंपरिक फसलों और पौधों पर बढ़ते खतरों को देखते हुए इनके संरक्षण के प्रयास किए जाने चाहिए। हालाँकि कई लोग इसका महत्व समझ कर इसे अपने घरो के आँगन में लगाना पसंद कर रहे है। कुछ पहाड़ी लोग जो प्रवासी है वे भी इसका महत्व देख गमलो में लगाना शुरू कर रहे है, हालाँकि शहरो में अभी यह उग नहीं रहा है।
सेहत और स्वाद का अद्भुत मेल
कंडाली का साग केवल एक व्यंजन नहीं, बल्कि उत्तराखंड की परंपरा, स्वास्थ्य और संस्कृति का प्रतीक है। इसकी औषधीय विशेषताओं और स्वादिष्टता के कारण यह व्यंजन हर किसी के दिल को भाता है। अगर आप उत्तराखंड की सैर पर जाएं, तो इस अनोखे व्यंजन का स्वाद जरूर लें। यह आपके स्वास्थ्य को नई ऊर्जा देगा और आपकी यात्रा को अविस्मरणीय बना देगा।
तो अगली बार जब भी आप उत्तराखंड जाएं, कंडाली का साग जरूर चखें और इसका लुत्फ उठाएं।
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